समाज | 6-मिनट में पढ़ें
Kaali Poster Controversy: अभिव्यक्ति की आज़ादी पर केवल हिन्दू धर्म की बलि क्यों?
धर्म का प्रेम, जूनून बन किस किस रूप में आता है इसके बारे में अब तो बताने की आवश्यकता नहीं है. हिन्दू धर्म तो यूं भी अपने देश में पुराने समय से रौंदे जाने के लिए बना है. इसका मखौल बाहर वालों से ज्यादा अपनों ने उड़ाया है. अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर केवल हिन्दू देवी-देवता ही क्यों?
समाज | 4-मिनट में पढ़ें
अफसोस ये है कि मां Kaali को सिगरेट पीते एक औरत ने ही दिखाया है!
मां काली को सिगरेट पीते दिखाना धार्मिक भावनाओं को आहत करने से कहीं ज़्यादा बड़ी बात है. दुनिया के करोड़ों लोग जो भी हिंदू धर्म को मानते हैं उनके लिए काली शक्ति का स्वरूप है. ये पोस्टर उस शक्ति पर प्रहार है. फ़ेमिनिजम तो ये बिलकुल नहीं है. क्योंकि जो पहले से शक्तिशाली है, आप उस स्त्री की शक्ति को कम करके दिखा रही हैं.
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
Kaali Movie poster: भावना भड़की, प्रतिक्रियां दे दीं...इससे अधिक हिन्दू समाज के वश में क्या है?
कई कम्युनिस्ट इंटेलेक्चुअल साफ कहते हैं कि हिन्दू प्रतीकों (Kaali Movie poster) को इतना अपमानित कर दो कि उसे भारतीय समाज अपनाते हुए डरने लगे. तिलक और यज्ञोपवीत पवित्रता के पर्याय हैं तो हर चोर को, अपराधी को, व्यभिचारी व अत्याचारी को यह पहनाकर गलियों में घुमाया जाए ताकी इन प्रतीकों का पर्याय बदल जाए.
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें
Kaali poster: हिंदुओं को अपनी भावनाओं को स्थायी रूप से छुट्टी पर भेज देना चाहिए
वामपंथी विचारधारा के लोगों ने हिंदू धर्म के खिलाफ ऐसे हेट प्रोपेगेंडा फैलाने का ठेका ले रखा है. लीना मनिमेकलाई (Leena Manimekalai) भी इनसे अलग नही हैं. उन्हें मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी से दिक्कत होती है. लेकिन, मां काली को सिगरेट पीते (Kaali Movie Poster shows Goddess Smoking) हुए दिखाना उनके लिए रचनात्मक स्वतंत्रता का हिस्सा है.
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें
मोहम्मद जुबैर के 'समर्थक' इन तर्कों को कैसे काटेंगे?
ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) की गिरफ्तारी को उनके समर्थक लोकतंत्र के खिलाफ बता रहे हैं. लेकिन, सोशल मीडिया (Social Media) पर जुबैर की गिरफ्तारी के पक्ष में दिए जा रहे तर्कों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. क्योंकि, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है.
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
धार्मिक भावनाओं पर ज्ञान देने वाली 'भावनाएं' जुबैर की गिरफ्तारी से आहत क्यों हैं?
बात तो शुरू होती है 'फ्री स्पीच' से. यदि मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) बेगुनाह हैं, तो नुपुर शर्मा भी हैं. और यदि धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप है, तो दोनों गुनाहगार हैं. किसी एक के खिलाफ सख्ती तो किसी के खिलाफ नरमी बरतने की वकालत कैसे की जा सकती है?
सोशल मीडिया | 3-मिनट में पढ़ें
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रंप का हवाला देकर क्यों खींचे ट्विटर के 'कान'?
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इस मामले आरोप में ट्विटर इंडिया (Twitter) और एक अन्य संगठन के खिलाफ एक मामला दर्ज किया गया था. दरअसल, इस मामले में एथिस्ट रिपब्लिक नाम के एक ट्विटर हैंडल पर देवी काली को लेकर आपत्तिजनक कॉन्टेंट शेयर करने का आरोप लगा था.
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